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अस्ता॑व्य॒ग्निर्न॒राꣳ सु॒शेवो॑ वैश्वान॒रऽऋषि॑भिः॒ सोम॑गोपाः। अ॒द्वे॒षे द्यावा॑पृथि॒वी हु॑वेम॒ देवा॑ ध॒त्त र॒यिम॒स्मे सु॒वीर॑म् ॥२९ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अस्ता॑वि। अ॒ग्निः। न॒राम्। सु॒शेव॒ इति॑ सु॒ऽशेवः॑। वै॒श्वा॒न॒रः। ऋषि॑भि॒रित्यृषि॑ऽभिः। सोम॑गोपा॒ इति॒ सोम॑ऽगोपाः। अ॒द्वे॒षेऽइत्य॑द्वे॒षे। द्यावा॑पृथि॒वीऽइति॒ द्यावा॑पृथि॒वी। हु॒वे॒म॒। देवाः॑। ध॒त्त। र॒यिम्। अ॒स्मेऽइत्य॒स्मे। सु॒वीर॒मिति॑ सु॒ऽवीर॑म् ॥२९ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:12» मन्त्र:29


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उन विद्वानों के सङ्ग से क्या होता है, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (देवाः) शत्रुओं को जीतने की इच्छावाले विद्वानो ! जिन तुम (ऋषिभिः) ऋषि लोगों ने (नराम्) नायक विद्वानों में (सुशेवः) सुन्दर सुखयुक्त (वैश्वानरः) सब मनुष्यों के आधार (अग्निः) परमेश्वर की (अस्तावि) स्तुति की है, जो तुम लोग (अस्मे) हमारे लिये (सुवीरम्) जिससे सुन्दर वीर पुरुष हों, उस (रयिम्) राज्यलक्ष्मी को (धत्त) धारण करो, उसके आश्रित (सोमगोपाः) ऐश्वर्य के रक्षक हम लोग (अद्वेषे) द्वेष करने के अयोग्य प्रीति के विषय में (द्यावापृथिवी) प्रकाशरूप राजनीति और पृथिवी के राज्य का (हुवेम) ग्रहण करें ॥२९ ॥
भावार्थभाषाः - जो सच्चिदानन्दस्वरूप ईश्वर के सेवक, धर्मात्मा, विद्वान् लोग हैं, वे परोपकारी होने से आप्त यथार्थवक्ता होते हैं, ऐसे पुरुषों के सत्सङ्ग के विना स्थिर विद्या और राज्य को कोई भी नहीं कर सकता ॥२९ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तत्सङ्गेन किं भवतीत्याह ॥

अन्वय:

(अस्तावि) स्तूयते (अग्निः) परमेश्वरः (नराम्) नायकानां विदुषाम्। (सुशेवः) सुष्ठु सुखः। शेवमिति सुखनामसु पठितम् ॥ (निघं०३.६) (वैश्वानरः) विश्वे सर्वे नरा यस्मिन् स एव (ऋषिभिः) वेदविद्भिर्विद्वद्भिः (सोमगोपाः) ऐश्वर्य्यपालकाः (अद्वेषे) द्वेष्टुमनर्हे प्रीतिविषये (द्यावापृथिवी) राजनीतिभूराज्ये (हुवेम) स्वीकुर्याम (देवाः) शत्रून् विजिगीषमाणाः (धत्त) धरत (रयिम्) राज्यश्रियम् (अस्मे) अस्मभ्यम् (सुवीरम्) शोभना वीरा यस्मात् तम् ॥२९ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे देवाः ! यैर्युष्माभिर्ऋषिभिर्यो नरां सुशेवो वैश्वानरोऽग्निरस्तावि, ये यूयमस्मे सुवीरं रयिं धत्त, तदाश्रिताः सोमगोपा वयमद्वेषे द्यावापृथिवी हुवेम ॥२९ ॥
भावार्थभाषाः - ये सच्चिदानन्दस्वरूपेश्वरसेवका धार्मिका विद्वांसः सन्ति, ते परोपकारकत्वादाप्ता भवन्ति, नहीदृशानां सङ्गमन्तरा सुस्थिरे विद्याराज्ये कर्त्तुं शक्नुवन्ति ॥२९ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जे लोक सच्चिदानंदस्वरूप ईश्वराचे सेवक, धर्मात्मा व विद्वान असतात ते परोपकारी असल्यामुळे आप्त व सत्यवचनी असतात अशा उत्तम पुरुषाच्या संगतीशिवाय स्थिर अशी विद्या व राज्य कोणीही प्राप्त करू शकत नाही.